फिराक के निशान
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थर_थरी सी है आसमानों में
ज़ोर कुछ तो है नातवानों में
कितना खामोश है जहाँ लेकिन
इक सदा आ रही है कानों में
कोइ सोचे तो फर्क कितना है
हुस्न और इश्क के फसानों में
मौत के भी उड़े हैं होश
जिंदगी के शराबखानों में
जिन की तामीर इश्क करता है
कौन रहता है उन मकानों में
इनही तिनको में देख ऐ बुलबुल
बिजलियाँ भी है आशियानों में